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क्या यही सुर दुर्लभ मानव तन है हमारी




क्या यही सुर दुर्लभ मानव तन है हमारी

दुःखो के समंदर में
डूबे हुए हैं हम
कैसा इस दुनिया के सितम है
कि खुद से भी डरे हुए हैं हम।
भूख को दूर करने के लिए
अपने और अपने परिवार का
क्या क्या नहीं कर गुजरते हैं
क्या यही सुर दुर्लभ मानव तन है हमारी।
किस पर करें भरोसा और
किस पर यकीन करें हम
आए दिन की परेशानियों से
हर पल गुजरते हैं हम।
स्वार्थ और लोभ हित में
डूबे हुए हैं अनेक लोग
कैसा जमाना आ गया है सज्जनों
कोई कोई गरीबों को भी लूटकर
करता है गंदा काम
मन की संतुष्टि कभी नसीब ही नहीं हुआ
क्या यही सुर दुर्लभ मानव तन है हमारी।
अपनी कलम में लहूं भरकम
मैं आज लिख रहा हूं
दिल में छुपे हुए जज्बात को लिख रहा हूं
कलियुग की गतिविधियां देख
सुख गए है मेरे आखों की आसूं
उन आसुओं का हिसाब लिख रहा हूं
पर हिम्मत नही है कि दिल की दास्तान सुनाऊं मैं
क्या यही सुर दुर्लभ मानव तन है हमारी।

नूतन लाल साहू नवीन

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4 Comments

Gunjan Kamal

27-Jul-2023 11:24 AM

👌👏

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Abhinav ji

27-Jul-2023 08:44 AM

Very nice 👍

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दुर्लभ तन है,,, हमारा,,, होगा हमारी की जगह,,,, कैसे,,, होगा कैसा की जगह,,,,,, मन की संतुष्टि,,,, नसीब नहीं हुई,,, होगा हुआ की जगह,,, लहू,, भर कर होगा,,, सूख,,, गए आँखों के आंसू,, आदि शब्द सही करें

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